
एक रंगीन सफ़ेदी- A Hindi Poetry; Use Google Translate to understand
**An ode to my devotion for HANUMAN**
मेरी ज़िद है वो,
मेरे धड़कन को हिम्मत दे वो;
मेरे आसमान का रंग भी वो,
वो हौसला ही नहीं, मेरी जुनून भी वो।
मैं ना सोच के भी सोचूँ
उन्ही की छवि के बारे में।
वो इस तरह समा गए ज़हन में मेरे,
खुद की खोज में खुद ही को भुला रही हूँ मैं।
ज़िंदगी का सफ़र है ऐसा सफ़र,
कोई जाना नहीं शायद, और समझा भी नहीं अगर।
तो क्या एक कहानी लिखनी है मुझे हर पल में?
या फिर बस पार करनी है ये धोके की डगर?
इस दुविधा को अपनी कमजोरी मत समझना तुम;
तुम्हारे पास तो वो क़लम है,
जो सफ़ेदी के पीछे छिपे रंगो को दर्शाती है।
तुम्हें बस घुल जाना है इस सफ़ेदी में।
इस तरह से घुल जाना है तुम्हें,
रास्ते में खुद को भी ना देख पाओ तुम।
कभी तुम्हें क़लम बन जाना है,
कभी खुद को सफ़ेदी में पाना है।
ज़िंदगी का सफ़र है ऐसा सफ़र,
यूँही कट जाएगी एक दिन समय के चलने से।
जब जो रंग दर्शाए उसे, ले अपने आँखों में भर;
फिर डूब जाना है अपनी सफ़ेदी के समंदर में।
समय के पाश में एक सोच ये है,
की दोहराते दोहराते सफ़ेदी क्या और रंग क्या?
सब एक हो कर सफ़ेदी ही हर पल में नज़र आती है।
अब ये क़लम की ज़िक्र की भी ज़रूरत ही क्या?
वो इस तरह से दर्शाते हैं मुझे,
सफ़ेदी की एक समंदर में।
लहरो को बनाते कभी, कभी हवाओं को;
नाव लिए, वो इंतज़ार करते हैं मेरे लिए।
मैं कैसे ना तैरूँ उनकी लहरो में?
मैं कैसे ना रंगु उनकी रंग भरे आसमानों में?
अब सब सौंप दूँ मैं उनकी हाथों में;
खुद की खोज में, खुद ही को जो भुला रही हूँ मैं।