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पहचान (Pehchaan)

रोज़ की तरह एक सुबह, मैं
छत परसूर्य के उगने की आस में खड़ी थी।
जैसे रात के ओस भरे बुरे सपनों को,
ये सफ़ेद किरणेंउड़ा ले जाती थी कहीं।
मानो गाड़ी के वाइपर की तरह,
बादलों के आसूँ पोंछे जा रहे हो;
या चोक के रोते शब्दडस्टर से मिलते ही
काली बोर्ड में घुसी जा रही हो।
इन किरणो पे निर्भर हो जाती
मेरी हर दिन की शुरुआत।
कभी बादल ढक देते सूर्य को अगर,
तो दिन कैसे कटता मुझे पूछना भी मत।

फिर एक दिनएक नीली रंग के पंख वाली
छोटी सी चिड़ियाछत पर मिल गयी।
मैंने सोचा मेरी तरह सूर्य से मिलने आयी हो;
एकांत शांति से बिना कोई चहक किए।
क्यूँ तुम डाल पे यूँ अकेले हो?
क्यूँ मुझे तुम्हारी मुस्कान नहीं झलकती?
तुम्हारे तो पंख भी सही सलामत हैं अभी,
फिर किस सोच ने तुम्हें बन्दी बना लिया है?
जाने दोकोई नहीं। शायद कहीं दूर से आए हो।
शोर से छुटकारा के लिए सही जगह पाए हो।
मुझे तो आदत लग चुकी है अभ,
शायद तुम मुझे रोज़ मिल जाओ।

फिर हम रोज़ मिलते रहे कुछ दिन,
भोर के इस संक्रमण में।
जैसे साथ में पिटाई मिल,
दो दोस्त दुखः बाँट रहे हो।
मुझे तो ऐसा ही लग रहा था
की सूर्य अभ बस एक बहाना था।
छत का दरवाज़ा खोलनज़र पहले
पीछे डाल की ओर ही जाता था।
तुम्हारा होना ही एक लम्बी साँस
और मन को तसल्लीदे जाता था।
ये आदत भी क्या चीज़ है
बिना कोई अल्फ़ाज़ों के भी टिक जाती है। 

फिर एक दिन सुबहसूर्य काली बादल ओडे,
अपने ही कोई ग़म में लिपटेधोका दे दिया।
मुझे और तुम्हें.. भी..अरे नीली पक्षी (whistle)
एक मिनटतुम भी?
मेरा होसला नहीं बन रहा था अभ।
इन सभ चीज़ों से लगाव नहीं,
इनपर मेरे हर पल निर्भर थे।
कुछ देर दरवाज़े का सिरानहा लिए,
खड़ी रहीडाल पे नज़र अटकाए हुए।
तुम शायद आजाओ और ये बादल भी मिट जाए।
इस हालत में रात के काले सोच
आँसू बनकर बरस आए उस दिन।

फिर मैंने छत पे जाना छोड़ दिया;
सपनों को ही नया दोस्त मान लिया।
हर दिन नए भेस लिए सूर्य निकलता आसमान में,
आज नीली पक्षी तो कल कोई और रागों वाले;
इन सभ पे क्यूँ निर्भर है मेरी साँसे?
ये सवाल मैं पूछती बड़े प्यार से।
सांसें तो चलती ही जाएगी अंतिम तक;
और रोज़ एक नयी रात लाएगी वक़्त;
तो इन सभ के बीच मेंमैं कौन हूँ?
समन्दर में चाहे कितनी भी तूफ़ान आजाए,
वो अपनी पहचान नहीं भुलाता।
तो मेरी पहचान क्या है

Written by Sneha Bhuwalka
For video of spoken word check Instagram @mycoffeeweather

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Chai ka Daag (चाय का दाग)

ये पीली shirt पे लगेचाई का दाग़
ने मुझेवो याद दिला दिया।
कई बार सोचा था,
कि एक बार मिला लूँ;
नम्बर याद तो था ही मुझे,
पर डर ने उँगलियों को जकड़ा था,
और सवालों ने मन को उलझाया।
कई बार तो ऐसा भी हुआ
की phone हाथो में लेकर,
उसमें कुछ लिखती
फिर मिटातीफिर कुछ लिखती
फिर भेजने की हिम्मत ना जुटा पाती।
ये लिख कर मिटाने की जैसे,
आदत सी लग गयी थी मुझे।
तुम क्या सोचोगे’ ये डर,
मेरी network भी समझ रही थी जैसे।

सुबह को चाई की चुस्की में गूढ़इलाइची और
तुम्हारे ख़यालों को भी घोल देती थी में;
अधरक की अक्सर ज़रूरत भी नहीं पढ़ती थी।
सुबह की अख़बार जब पापा पढ़ते,
तो पीछे से सारे शब्द धुँधले से दिखते मुझे।
माँ जब रसोई से आवाज़ देती थी—”बेटा!”
तो ये कानअपने ही कोई धुन को घूरती रहती।
फिर जब cab आतीतो कुछ हमेशा पीछे छूट जाता;
लेकिनतुम्हारे किताब को कस के पकड़,
हर दिन की शुरुआत करती थी मैं।

Office में काम तो वैसे भी कोई नहीं करता,
तो मैं फिर वो किताब खोल लेती।
Boss 
आता तो computer की ओर नज़रें फेर लेती।
Boss 
जाता तो तुम्हारे अदृश्य पन्नो पे;
जो AC के हवा से आगे पीछे हो गयी थी।
तो कहाँ छोड़ा थावहीं से फिर शुरू हो जाती।
इतने में दूसरी चाई के cup में,
तुम्हारे ख़याल ताज़ा हो जाते।
ऐसे पड़ते है शायदकिताबी कीड़े।
उनको कहानी से इतनी आस हो जाती है,
की कुछ भी समय मिलते ही
उसमें गुम हो जाने को मन करता है।

फिर एक दिन मेरी दोस्त रोशनी ने,
मुझे कुछ पढ़ते वक़्त शर्माते हुए देखा,
और मुझे कंधे से पकड़ हिलाया।
तो मानो किताब थी ही नहीं जैसे;
चित्र पर पानी फेर दिया हो वैसे।
TV 
देखते वक़्तकोई आकर बंद कर दिया हो जैसे।
जलती मचिस को पानी में ढाल दिया हो वैसे।
मेरी ख़यालों की क़दर
जैसे नोट बन्दी में पुराने नोटो की।
कुछ चाईमेरी office के shirt पे,
ये दाग़ भी छोड़ गए उस दिन। 

रोशनी ने मेरे ख़्यालों को चाय में
buiscut 
के जैसे डूबा कर,  मुझे कहा
सभ ख़यालों में ही हो जाता तो कितना आसान होता
मेरी मानो चलो अभी बात करो
उसने हाथ से phone झपटकर
तुम्हारा number मिला दिया।
मैं उससे वापस छीन पाती,
उस से पहले वो call ring हो रहा था।
मुझे कुछ सोचने का समय भी नहीं मिला;
बंदरो के जैसे कूद रहे थे हम।
मेरी हालत कोई पहली बार,
Airplane 
में बैठने वालेके जैसे:
साँस अटकी हुई और
दिल तो सीने के बाहर ही धड़क रहाथी
मुझे ambulance की याद  ही रही थी
की इतने में phone पेतुम्हारी आवाज़ आयी—“Hello!”